भोले की हैट्रिक या पाल की साइकिल: अकबरपुर संसदीय सीट पर चुनावी जंग
कानपुर देहात, दिनांक: 12 मई 2024
अकबरपुर संसदीय सीट पर भाजपा सांसद देवेंद्र सिंह भोले और भाजपा के प्रतियोगी, सपा के उम्मीदवार राजाराम पाल के बीच चुनावी मैदान में तनाव बढ़ रहा है। इस चुनाव में भोले ने मोदी की गारंटी, क्षेत्र में हुए विकास कार्य और कानून व्यवस्था को मुद्दा बनाकर जनता से वोट मांग रहे हैं, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी राजाराम पाल बेरोजगारी, महंगाई और आरक्षण के मुद्दे को अपने हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।
अकबरपुर संसदीय सीट का रोमांच 2009 में बसपा के उम्मीदवार राजाराम पाल ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी, जबकि 2014 में भोले ने भाजपा के टिकट पर विजयी हुए थे। उनकी दूसरी और तीसरी जीत के बाद अब चुनावी लड़ाई में दोनों पक्षों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है।सपा और बसपा के द्वारा की गई संयुक्त प्रयासों के बावजूद, भोले और पाल के बीच की मुकाबला तनावपूर्ण है। इस क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या का महत्व है, और बसपा ने इसे ध्यान में रखते हुए राजेश द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया है।
इस चुनाव में सांसद देवेंद्र सिंह भोले और राजाराम पाल के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। दोनों पक्षों के बीच तनाव की स्थिति चुनावी मैदान में दिख रही है।चुनावी दृश्य देखने को मिल रहा है कि किस उम्मीदवार के लिए जनता ने किस आधार पर विकल्प किया है। भोले की हैट्रिक या पाल की साइकिल, यह तय होने में अभी कुछ समय बाकी है।
चुनावी मैदान में भोले और पाल के बीच की तनावपूर्ण जंग को देखते हुए, सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने मोदी सरकार द्वारा क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों को मुद्दा बनाया है। उन्होंने भाजपा के नेतृत्व में कानपुर देहात के विकास को आगे बढ़ाने का दावा किया है, जबकि राजाराम पाल ने बेरोजगारी, महंगाई और आरक्षण को मुद्दा बनाकर जनता के ध्यान को अपनी ओर खींचने का प्रयास किया है।
चुनावी प्रक्रिया में बसपा और सपा ने भी अपने-अपने उम्मीदवारों के पक्ष में समीकरण साधने का प्रयास किया है। इसके अलावा, पीएम नरेंद्र मोदी भी चुनावी मैदान में माहौल बना चुके हैं, जिससे चुनाव की गतिशीलता में नए आयाम जोड़े गए हैं।अकबरपुर संसदीय सीट पर राजेश द्विवेदी के उम्मीदवारी से ब्राह्मण वोटरों की ध्यान में रखते हुए, सपा को उनके परंपरागत मतदाताओं के साथ ब्राह्मण मतों के साथ जाने से फायदा होगा।
इससे चुनावी लड़ाई में भोले की हैट्रिक को रोकने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।इस बीच, बिठूर के विधायक अभिजीत सिंह सांगा के साथ भोले के बीच छत्तीस का आंकड़ा है, जो चुनावी वातावरण में और भी तनावपूर्णता ला रहा है।चुनावी प्रक्रिया की दृश्यशाली समाप्ति और नतीजों के साथ-साथ, किस उम्मीदवार के लिए जनता ने किस आधार पर विकल्प किया है, यह वक्त ही स्पष्ट करेगा।
अकबरपुर संसदीय सीट पर चुनावी मैदान के बीच का तनाव बढ़ता जा रहा है। चुनावी प्रक्रिया के समाप्त होने के बाद, नतीजों की घोषणा होगी और सबसे महत्वपूर्ण सवाल होगा - क्या भोले की हैट्रिक रोकी जा सकती है, या फिर राजाराम पाल की साइकिल चलेगी? जवाब अब सिर्फ नतीजों में है।
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