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पुलिस की प्रताड़ना से सब्जी विक्रेता सुसाइड कांड: आरोपी दरोगा-कांस्टेबल को हाईकोर्ट से अरेस्टिंग स्टे, पुलिस की लचर पैरवी बनी वजह

 पुलिस की प्रताड़ना से सब्जी विक्रेता सुसाइड कांड: आरोपी दरोगा-कांस्टेबल को हाईकोर्ट से अरेस्टिंग स्टे, पुलिस की लचर पैरवी बनी वजह

कानपुर में पुलिस की प्रताड़ना से सब्जी विक्रेता सुनील राजपूत की आत्महत्या के मामले में आरोपी दरोगा सतेंद्र कुमार यादव और कांस्टेबल अजय यादव को हाईकोर्ट से अरेस्टिंग स्टे मिल गया है। इस मामले में पुलिस की लचर पैरवी और धारा 386 को 384 में बदलने के कारण आरोपियों को राहत मिली है।



आत्महत्या की वजह

सचेंडी कस्बा निवासी 26 वर्षीय सुनील राजपूत, चकरपुर मंडी कछियाने में सब्जी की दुकान लगाता था। बीते 13 मई को सुनील ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या से पहले उसने एक वीडियो बनाकर अपने वॉट्सऐप स्टेटस में डाला था, जिसमें उसने चकरपुर मंडी चौकी इंचार्ज सतेंद्र कुमार यादव और कॉन्स्टेबल अजय यादव पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। वीडियो में उसने बताया कि चौकी इंचार्ज और सिपाही दुकान लगाने के एवज में जबरन सब्जी और पैसों की वसूली करते थे, और मना करने पर मारपीट करते थे।

मामला दर्ज और फरारी

सुनील की आत्महत्या के बाद, उसके परिवार ने चौकी इंचार्ज और कांस्टेबल के खिलाफ रंगदारी (आईपीसी की धारा-386) और आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने (आईपीसी की धारा-306) समेत अन्य धाराओं में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसके बाद से दोनों आरोपी पुलिसकर्मी फरार चल रहे थे।

हाईकोर्ट में याचिका और अरेस्टिंग स्टे

जिला जज की कोर्ट से अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद, आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। न्यायाधीश सिद्धार्थ वर्मा और विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए आरोपी दरोगा और कांस्टेबल को अरेस्टिंग स्टे दे दिया। कोर्ट ने सचेंडी पुलिस से तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।

पुलिस की लचर पैरवी

इस केस में पुलिस की लचर पैरवी का प्रमुख आधार यह रहा कि गैर-जमानतीय धारा-386 को हटाकर जमानतीय धारा-384 में बदल दिया गया। आरोपियों ने तर्क दिया कि एफआईआर जल्दबाजी में दर्ज की गई और उसमें लगाए गए आरोप गलत थे। इसके साथ ही, मृतक के भाई के आपराधिक इतिहास और अन्य तथ्यों को पेश कर आरोपियों ने हाईकोर्ट से अरेस्टिंग स्टे प्राप्त किया।

सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण

यह मामला केवल एक आत्महत्या की घटना नहीं है, बल्कि यह पुलिस के द्वारा नागरिकों पर की जाने वाली प्रताड़ना और अन्याय का एक और उदाहरण है। पुलिस की लचर पैरवी और न्यायिक प्रक्रिया में विलंब के कारण आरोपी पुलिसकर्मियों को राहत मिलना, इस बात की ओर इशारा करता है कि न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है।

पीड़ित परिवार की स्थिति

सुनील के परिवार के लिए यह घटना एक गहरा सदमा है। बालकृष्ण राजपूत के पांच बेटों में सबसे छोटे सुनील की आत्महत्या ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया है। परिवार ने न्याय की उम्मीद में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस की लचर पैरवी ने उनकी उम्मीदों को धक्का पहुंचाया है।

इस मामले में हाईकोर्ट के निर्देशानुसार सचेंडी पुलिस को तीन सप्ताह के भीतर काउंटर जवाब दाखिल करना होगा। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुलिस इस बार कितनी मजबूती से अपना पक्ष रखती है और क्या आरोपी पुलिसकर्मियों को न्यायालय से कोई और राहत मिलती है या नहीं।

यह घटना समाज में पुलिस की भूमिका और उनके द्वारा किए जाने वाले कृत्यों पर सवाल उठाती है। पुलिस को जनता की सुरक्षा और सेवा के लिए तैनात किया जाता है, लेकिन जब वही पुलिस नागरिकों पर अत्याचार करती है, तो न्याय प्रणाली का भरोसा कम होता है। इस मामले में आरोपी पुलिसकर्मियों को हाईकोर्ट से मिली राहत और पुलिस की लचर पैरवी इस ओर इशारा करती है कि पुलिस व्यवस्था और न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसे मामले दोबारा हों।

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सुनील राजपूत की आत्महत्या और उसके पीछे की वजहें हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि पुलिस की भूमिका केवल कानून व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का भी सही तरीके से निर्वहन करना चाहिए। उम्मीद है कि इस मामले में न्याय मिलेगा और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होगी।

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