कानपुर देहात : यमुना की तलहटी में बाढ़ का खतरा, प्रशासन ने बनाई बाढ़ चौकियाँ
कानपुर देहात के भोगनीपुर तहसील क्षेत्र के कई गांवों में मानसून की दस्तक के साथ ही बाढ़ की आशंका से लोग चिंतित हो गए हैं। हालांकि अभी यमुना और सेंगुर नदी उफान पर नहीं हैं, लेकिन बाढ़ की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने पहले से ही तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। इस समय तक, प्रशासन ने आठ बाढ़ चौकियाँ स्थापित की हैं और यमुना के जलस्तर पर नजर रखने के निर्देश दिए हैं।
बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्र: भोगनीपुर तहसील के ज्यादातर गांव यमुना की तलहटी में बसे हैं। हर साल बरसात के समय यमुना नदी का जलस्तर बढ़ने से ये गांव बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। सहायक नदी सेंगुर के किनारे बसे गांवों का हाल और भी बुरा हो जाता है। हर साल सैकड़ों बीघा फसल जलमग्न होकर नष्ट हो जाती है। पथार समेत अन्य गांव के लोगों का कहना है कि हर साल बरसात में यमुना और सेंगुर नदी का उफान बढ़ने से आसपास के गांव प्रभावित होते हैं।
प्रशासन की तैयारियाँ: एसडीएम भोगनीपुर सर्वेश सिंह ने बताया कि बाढ़ से प्रभावित होने वाले गांवों का दौरा कर ऊंचे स्थान पर बाढ़ चौकियाँ बनवाई गई हैं। इन चौकियों में लेखपालों और ग्राम विकास अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई है। इसके अलावा, नाविकों की सूची बनाकर नाव तैयार कराई जा रही हैं।
बाढ़ की चौकियों की स्थिति: यमुना तलहटी के 26 गांवों में बाढ़ का खतरा है, जिसमें बम्हरौली घाट, अहरौली घाट, नगीना बांगर, क्योंटरा बांगर, हलिया, चपरघटा, चंदनामऊ मजरा फत्तेपुर, कृपालपुर, चपरेहटा और अन्य गांव शामिल हैं। इन सभी गांवों में बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन ने विशेष तैयारियाँ की हैं।
बाढ़ चौकियों में ड्यूटी: मानसूनी बारिश के चलते यमुना में पानी बढ़ने पर बाढ़ की आशंका को देखते हुए स्थापित की गई आठ चौकियों में लेखपाल और ग्राम विकास अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई है। उदाहरण के लिए, चपरघटा में लेखपाल रामचंद्र पटेल और ग्राम विकास अधिकारी राजेश यादव की ड्यूटी लगाई गई है, जबकि मूसानगर में लेखपाल प्रवीण शुक्ला और वीडीओ सुनील यादव की ड्यूटी है।
स्थानीय समस्याएँ: ग्रामीणों का कहना है कि सरकार द्वारा किए गए वादों के बावजूद, अभी तक कई समस्याएँ ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। पथार गांव में ऊंची पुलिया का निर्माण अभी तक नहीं कराया गया है। वहीं, निचले स्थानों में बसे लोगों को ऊंचे स्थानों पर बसाने की बात कही गई थी, लेकिन धरातल पर अभी तक कुछ नहीं हुआ। इसी तरह की समस्याएँ यमुना और सेंगुर नदी से घिरे क्योंटरा बांगर के ग्रामीणों ने भी बताई हैं।
बाढ़ के समय आने-जाने के लिए केवल नाव का सहारा होता है और फसलों के नष्ट होने के साथ मवेशियों के लिए चारे की समस्या होती है। बाढ़ के समय मदद के नाम पर सिर्फ कुछ दिनों का खाद्यान्न देकर खानापूर्ति कर दी जाती है, जबकि फसलों के नुकसान का मुआवजा समय से नहीं मिलता।
प्रशासन द्वारा बाढ़ की आशंका को देखते हुए की गई तैयारियाँ सराहनीय हैं, लेकिन इन गांवों में दीर्घकालिक समाधान की भी आवश्यकता है। ग्रामीणों की समस्याओं का स्थायी समाधान निकालना बेहद जरूरी है, ताकि वे हर साल बाढ़ के खतरे से सुरक्षित रह सकें।
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