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कानपुर देहात: दमघोंटू हवा और जहरीले पानी से बढ़ता प्रदूषण, बीमारियां दे रहीं दस्तक

कानपुर देहात: दमघोंटू हवा और जहरीले पानी से बढ़ता प्रदूषण, बीमारियां दे रहीं दस्तक


कानपुर देहात में प्रदूषण की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। औद्योगिक इकाइयों और ईंट भट्ठों से निकलने वाले धुएं ने हवा को जहरीला बना दिया है, जबकि नदियां और जल स्रोत फैक्ट्रियों के कचरे से प्रदूषित हो चुके हैं। इस गंभीर स्थिति का सबसे बड़ा खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है, जो अब बढ़ती बीमारियों और जहरीले वातावरण से जूझने को मजबूर हैं।

प्रतीकात्मक चित्र


औद्योगिक क्षेत्रों से उठता जहर


रनियां और जैनपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में करीब 400 फैक्ट्रियां हैं, जिनमें से 150 से अधिक इकाइयां प्रदूषण फैलाने में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। इन फैक्ट्रियों में से कई की चिमनियां मानक ऊंचाई की नहीं हैं, जिससे निकलने वाला धुआं आस-पास के वातावरण को दमघोंटू बना देता है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग की निष्क्रियता के चलते ये फैक्ट्रियां खुलेआम पर्यावरण के नियमों की अनदेखी कर रही हैं। न केवल वातावरण, बल्कि लोगों का स्वास्थ्य भी इनसे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।


ईंट भट्ठे भी बढ़ा रहे समस्या


जिले में 400 से अधिक ईंट भट्ठों की चिमनियां भी जहरीला धुआं उगल रही हैं। इनसे निकलने वाले धुएं में मौजूद रसायन न केवल हवा को प्रदूषित करते हैं, बल्कि आस-पास रहने वाले लोगों को एलर्जी, चिड़चिड़ापन, और सांस संबंधी समस्याओं का शिकार बना रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इन भट्ठों से निकलने वाले धुएं का लंबे समय तक संपर्क गंभीर बीमारियों जैसे अस्थमा और फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकता है।


नोन नदी: जीवनदायिनी से जहरीला नाला बनी


अकबरपुर क्षेत्र की नोन नदी, जो कभी सिंचाई और मवेशियों की प्यास बुझाने का प्रमुख स्रोत थी, अब फैक्ट्रियों का दूषित पानी और कचरा बहाए जाने के कारण गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। लगभग डेढ़ दशक पहले तक यह नदी ग्रामीणों के लिए जीवन रेखा मानी जाती थी, लेकिन अब इसका अस्तित्व खतरे में है। इस नदी को पुनर्जीवित करने की कई योजनाएं बनीं, लेकिन शासन और प्रशासन की लापरवाही के चलते इनमें से कोई भी जमीन पर उतर नहीं पाई।


स्वास्थ्य पर प्रदूषण का गंभीर असर


बढ़ते प्रदूषण के चलते सांस की बीमारियां, त्वचा रोग, और एलर्जी के मामलों में भारी वृद्धि हो रही है। डॉक्टरों के मुताबिक, फेफड़ों, लीवर, और अन्य आंतरिक अंगों पर भी इसका गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक बन गई है। गंदी हवा और पानी के कारण क्षेत्र में दमा और त्वचा रोग जैसे मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।


शासन और प्रशासन की नाकामी


पर्यावरण संरक्षण के प्रति शासन और प्रशासन की उदासीनता इस स्थिति को और गंभीर बना रही है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग के पास न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही इच्छाशक्ति, जिसके चलते औद्योगिक इकाइयों और ईंट भट्ठों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो रही। नोन नदी को पुनर्जीवित करने के लिए बनी योजनाएं फाइलों तक सीमित हैं। शहरी कूड़े के निस्तारण और प्रदूषणकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए स्थानीय प्रशासन की अनदेखी ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। आम जनता के स्वास्थ्य और पर्यावरण की कीमत पर विकास के नाम पर यह लापरवाही बर्दाश्त के बाहर है।


समाधान की ओर कदम उठाने की जरूरत


अब समय आ गया है कि शासन और प्रशासन इस समस्या की गंभीरता को समझे और ठोस कदम उठाए। फैक्ट्रियों और ईंट भट्ठों को प्रदूषण मानकों का पालन करने के लिए मजबूर करना होगा। नोन नदी को पुनर्जीवित करने के लिए योजनाओं को अमलीजामा पहनाना होगा। इसके अलावा, शहरी कूड़े-कचरे के प्रबंधन के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी। जनता को भी जागरूक होकर इन मुद्दों पर प्रशासन से जवाबदेही मांगनी चाहिए।


यदि समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह प्रदूषण न केवल पर्यावरण, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी अंधकारमय बना देगा।


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