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रूरा ओवरब्रिज: चार साल बाद भी अधूरा, जनता बेहाल, जिम्मेदार बेपरवाह

रूरा ओवरब्रिज: चार साल बाद भी अधूरा, जनता बेहाल, जिम्मेदार बेपरवाह


कानपुर देहात के रूरा कस्बे में बन रहा ओवरब्रिज सरकारी लापरवाही और धीमी कार्यशैली का जीता-जागता उदाहरण बन गया है। 2019 में स्वीकृत इस पुल का निर्माण आज चार साल बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। दिल्ली-हावड़ा रेल मार्ग पर पश्चिमी क्रॉसिंग के ऊपर बनने वाले इस ओवरब्रिज को क्षेत्र के लोगों की सुविधा के लिए तैयार किया जा रहा था, लेकिन यह सुविधा अब परेशानी में बदल चुकी है। जनता को जाम और लंबा सफर झेलने के लिए मजबूर कर दिया गया है, जबकि निर्माण कार्य की देरी ने व्यापारियों के काम पर भी गहरी चोट की है।



चार साल से जारी इंतजार, फिर भी अधूरा पुल

₹38.33 करोड़ की लागत से बन रहे इस पुल का काम मार्च 2019 में शुरू हुआ था। इसकी कुल लंबाई 945 मीटर और 32 पिलर पर आधारित संरचना है। दिसंबर 2021 तक इस पुल का निर्माण कार्य पूरा होना था। 1 जुलाई 2020 को राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला ने इसका शिलान्यास करते हुए समय पर काम पूरा होने का भरोसा दिलाया था। परंतु कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के कारण काम समय पर शुरू नहीं हो सका।


कोरोना के बाद 2022 में उप्र सेतु निर्माण निगम ने निर्माण कार्य तेज करने और उसी वर्ष पुल को पूरा करने का दावा किया। बावजूद इसके, निर्माण की गति इतनी धीमी रही कि 2023 खत्म होने तक पुल अधूरा है। अब जनवरी 2025 तक काम पूरा करने की बात कही जा रही है, लेकिन जनता के सब्र का बांध टूटने लगा है।


रेलवे फाटक बना जाम का नासूर

पश्चिमी रेलवे फाटक पर घंटों तक ट्रेनों की आवाजाही के कारण बंद रहने वाली क्रॉसिंग ने स्थानीय लोगों के लिए यातायात को दुश्वार बना दिया है। रसलाबाद और श्विली जैसे स्थानों से मुख्यालय, कोर्ट या अन्य जरूरी जगहों पर जाने वालों को लंबा चक्कर लगाना पड़ता है। जाम के कारण न केवल वाहन फंसते हैं, बल्कि पैदल चलने वालों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।


व्यापारियों पर पड़ रहा सीधा असर

इस समस्या ने रूरा के व्यापारियों की रोजी-रोटी पर भी सीधा असर डाला है। रेलवे फाटक के पास दुकान चलाने वाले व्यापारियों का कहना है कि फाटक बंद होने और जाम के कारण ग्राहक क्षेत्र में आना ही छोड़ चुके हैं। व्यापारियों के मुताबिक, उनका कारोबार 50 प्रतिशत तक गिर चुका है। जाम की समस्या ने रूरा कस्बे की व्यावसायिक गतिविधियों को ठप कर दिया है।


निर्माण में देरी: लापरवाही या अक्षमता?

निर्माण कार्य में देरी के पीछे अलग-अलग बहाने दिए जा रहे हैं। कभी कोरोना का हवाला दिया जाता है, तो कभी रेलवे की डिजाइन बदलने की बात कही जाती है। रेलवे की डिजाइन बदलने के कारण दो पिलर तोड़कर दोबारा बनाने पड़े, जिससे काम में और देरी हुई। अब सहायक अभियंता होती लाल ने दावा किया है कि पुल का निर्माण जनवरी 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन जनता को यह वादा भी झूठा और समय काटने का तरीका लग रहा है।


जनता और राष्ट्रपति की अपील भी बेअसर

25 जून 2021 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रूरा स्टेशन पर अधिकारियों को ओवरब्रिज का काम जल्द पूरा करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों ने इस निर्देश को गंभीरता से नहीं लिया। अधिकारियों की लापरवाही और धीमी कार्यशैली से जनता में गहरा आक्रोश है।


लापरवाह अधिकारियों पर हो सख्त कार्रवाई

स्थानीय लोग अब सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि निर्माण कार्य में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। पुल का अधूरा रहना न केवल सरकार की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि यह जनता के साथ किया गया अन्याय है।


कब पूरा होगा अधूरा सपना?

चार साल बीतने के बाद भी पुल का काम पूरा न होना सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। जनवरी 2025 की नई समय-सीमा भी जनता को आश्वस्त करने में नाकाम साबित हो रही है। अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह पुल सरकार की अक्षमता और लापरवाही का एक और स्मारक बनकर रह जाएगा।


इस अधूरी परियोजना ने यह साफ कर दिया है कि सरकारी तंत्र की उदासीनता जनता की समस्याओं को समझने और सुलझाने में कितनी अक्षम है। जनता अब उम्मीद कर रही है कि उनकी आवाज सुनी जाएगी और यह पुल जल्द से जल्द बनकर तैयार होगा।


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