कानपुर देहात: रिश्वतखोरी का "चार्जशीट मॉडल" – दारोगा यशपाल का नवीनतम स्टार्टअप
कानपुर देहात में पुलिस ने साबित कर दिया कि उनकी वर्दी न सिर्फ
कानून की सुरक्षा के लिए है,
बल्कि रिश्वत के नोट गिनने का परफेक्ट बैग भी है। रूरा थाने के
दारोगा यशपाल सिंह ने "जुगाड़ न्याय" का एक नया मॉडल पेश किया—जहां 10 हजार रुपये देकर
आप चार्जशीट "ऑन डिमांड" हासिल कर सकते हैं।
"पुलिसिया
ईमानदारी" का अनोखा उदाहरण:
एटा जिले से आए दारोगा यशपाल सिंह दो महीने पहले रूरा थाने में तैनात
हुए थे। उनकी तैनाती के साथ ही थाने ने "रिश्वत सेवा केंद्र" का शुभारंभ
कर दिया। जब रूरा निवासी सुनीता देवी ने मारपीट का मामला दर्ज कराया, तो उन्हें क्या
पता था कि न्याय पाने के लिए उन्हें "पैकेज डील" करनी होगी। दारोगा साहब
ने चार्जशीट के लिए 20
हजार रुपये मांगे। आखिरकार "ग्राहक की संतुष्टि" को ध्यान
में रखते हुए उन्होंने डील 10
हजार में पक्की कर दी।
एंटी करप्शन टीम का ग्रैंड फिनाले:
सुनीता देवी ने जब एंटी करप्शन टीम को इसकी सूचना दी, तो टीम ने पूरे
ड्रामे की स्क्रिप्ट तैयार की। बुधवार शाम को सुनीता देवी 10 हजार रुपये लेकर
दारोगा साहब के पास पहुंचीं। जैसे ही दारोगा ने रुपये हाथ में लिए, एंटी करप्शन टीम
ने धमाकेदार एंट्री मारी।
दारोगा यशपाल का चेहरा देखने लायक था—वर्दी में रहते हुए भी वह खुद को बचा नहीं सके।
अकबरपुर थाने की "स्पेशल रूम बुकिंग":
एंटी करप्शन टीम ने दारोगा को सीधे अकबरपुर थाने पहुंचाया, जहां उनके खिलाफ
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। अब यशपाल साहब के लिए
थाने की कुर्सी की जगह लॉकअप का ठिकाना तैयार है। एसपी बीबीजीटीएस मूर्ति ने तुरंत
उन्हें निलंबित कर दिया और विभागीय जांच का वादा किया।
कानपुर देहात पुलिस ने एक बार फिर अपनी "प्रतिभा" का
प्रदर्शन किया। ऐसा लगता है कि थानों में न्याय अब सरकारी काम नहीं, बल्कि प्राइवेट
बिजनेस बन गया है। "चार्जशीट" एक ऐसा प्रोडक्ट बन गई है, जिसे सिर्फ
"मोलभाव" करके खरीदा जा सकता है।
जनता के लिए नया संदेश:
"भाई, एफआईआर दर्ज
करानी हो या चार्जशीट चाहिए,
तो पहले अपने बैंक बैलेंस का हिसाब-किताब देख लो। और हां, एंटी करप्शन टीम
का नंबर याद रखना—क्योंकि
वर्दी वाले अब नियम तोड़ने में मास्टर हैं।"
दारोगा यशपाल का यह कारनामा बताता है कि कानपुर देहात में कानून नहीं
बिकता, बल्कि
उसका "किराया" लिया जाता है। पुलिस महकमे को अगर वाकई सुधारना है, तो पहले यह तय
करना होगा कि उनकी वर्दी कानून की रक्षा के लिए है या सिर्फ रिश्वत के नोट गिनने
के लिए।
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