बेसहारा का सपना, ग्राम प्रधान का खजाना: आवास योजना के बहाने भृष्टाचार का नया अध्याय
कहिंजरी भीखदेव की विधवा शबनम, जो अपनी झोपड़ी में अपने तीन बच्चों के साथ किसी तरह दिन काट रही हैं, का सपना था कि सरकार की आवास योजना से उन्हें भी एक अदद छत मिल जाए। लेकिन उनकी यह उम्मीद ग्राम प्रधान और सचिव की जेबें भरने के अभियान में कहीं खो गई।
आवास योजना या "आपका हिस्सा निकालो योजना"?
सरकार की यह योजना भले ही गरीबों के लिए छत मुहैया कराने की हो, लेकिन प्रधान और सचिव ने इसे “आपका हिस्सा निकालो योजना” बना डाला। शबनम ने बताया कि जब उनका नाम योजना में आया, तो प्रधान ने सीधे-सीधे कहा, “देखिए जी, आवास चाहिए तो पैसे दीजिए। नहीं तो सूची से नाम गायब समझिए!”
अब सोचिए, जो महिला मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पाल रही है, वह कहां से इन ‘महोदयों’ की भूख मिटाने के लिए पैसे लाएगी? जब उसने पैसे नहीं दिए, तो उसका नाम योजना से रफूचक्कर कर दिया गया।
जांच की खानापूर्ति: एक नई परंपरा
शबनम ने न्याय की आस में अधिकारियों के दफ्तरों के कितने चक्कर काटे, इसका हिसाब शायद उनके फटे हुए चप्पलों से लगाया जा सकता है। लेकिन अधिकारियों ने बस “जांच कराएंगे” का राग अलापा। यह जांच किसी रहस्यमय प्राचीन मंत्र की तरह है, जिसे सुनकर सभी को लगे कि समस्या हल हो रही है, जबकि असल में हो कुछ नहीं रहा।
खंड विकास अधिकारी डीपी यादव ने कहा, “मामला संज्ञान में नहीं है, लेकिन अब आ गया है। सख्त कार्रवाई करेंगे।” अब सोचने वाली बात यह है कि संज्ञान में मामला आने के लिए कितनी और झोपड़ियों को भ्रष्टाचार की बलि चढ़ाना पड़ेगा?
ग्राम सचिव और प्रधान साहब इस मामले में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। जब उनसे संपर्क करने की कोशिश की गई, तो सचिव साहब फोन उठाने की जहमत तक नहीं उठाते। शायद वह अपने भ्रष्टाचार की अगली योजना बनाने में व्यस्त होंगे। प्रधान जी तो इस कदर मासूम बन गए हैं, जैसे उनसे बड़ा गरीब इस गांव में कोई और हो ही नहीं सकता।
शबनम की झोपड़ी शायद सरकार के लिए कोई बड़ी बात न हो, लेकिन उस पर पड़े हर छेद से प्रधान और सचिव की करतूतें झांकती नजर आती हैं। सरकार की योजनाएं भले ही “सबका साथ, सबका विकास” की तर्ज पर बनाई जाती हों, लेकिन इन भ्रष्टाचारियों ने इसे “अपना साथ, अपना विकास” में बदल दिया है।
अब देखना यह है कि जांच के नाम पर कितने और कागजों की फाइलें इधर-उधर होती हैं और कितने अधिकारी शबनम की झोपड़ी तक पहुंच पाते हैं। लेकिन जब तक यह भ्रष्टाचार जड़ों से खत्म नहीं होता, आवास योजना गरीबों के लिए कम और प्रधान-सचिव के खजाने के लिए ज्यादा कारगर साबित होती रहेगी।
तो साहब, अगली बार अगर किसी योजना में आपका नाम आए और कोई पैसे मांग ले, तो समझ जाइए, यह योजना आपकी नहीं, किसी और की जेब गरम करने के लिए बनी है।
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