Breaking News

6/recent/ticker-posts

कानपुर देहात स्वास्थ्य विभाग की नई उपलब्धि – गरीबों की दवाएं जला दीं, अब मरीजों को धुएं से होगा इलाज!

कानपुर देहात स्वास्थ्य विभाग की नई उपलब्धि – गरीबों की दवाएं जला दीं, अब मरीजों को धुएं से होगा इलाज!


कानपुर देहात के भोगनीपुर स्थित अमरौधा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में गरीबों की दवाएं जलाने का एक अनोखा और क्रांतिकारी प्रयोग किया गया है। स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी इतने दयालु निकले कि उन्होंने सोचा, "दवाएं गरीबों के पेट में जाएं या आग में, क्या फर्क पड़ता है?" और बस, जलती दवाओं का धुआं हवा में घुलकर एक नई तरह की "हवा-हवाई थेरेपी" का निर्माण कर गया। वायरल वीडियो में अस्पताल परिसर में बिखरी हुई दवाएं और उन्हें जलाते कर्मचारी साफ देखे जा सकते हैं। आग की लपटों और धमाकों के साथ यह प्रयोग और भी प्रभावी नजर आता है।



जब डॉक्टर साहब को पता ही नहीं, तो गलती किसकी?

जब इस ऐतिहासिक घटना पर अस्पताल के प्रभारी डॉ. अमित निरंजन से सवाल किया गया, तो उन्होंने पहले तो वही किया जो एक सच्चे सरकारी अधिकारी को करना चाहिए – "मुझे कोई जानकारी नहीं है!" अब भला अस्पताल में क्या हो रहा है, यह जानना किसी प्रभारी डॉक्टर का काम थोड़े ही है? उन्होंने फरमान जारी किया कि हो सकता है मरीज खुद ही दवाएं फेंक गए हों। वाह! यानी अब मरीज मुफ्त में मिली दवाओं को जलाने का शौक पाल बैठे हैं? जब वीडियो सामने आया और झूठ टिक न सका, तब जाकर साहब ने जांच कमेटी बैठाने की घिसी-पिटी घोषणा कर दी।




गरीबों का इलाज – दवा नहीं, सिर्फ धुआं!

अब तक हमने सुना था कि गरीबों को इलाज में लापरवाही मिलती है, लेकिन यह नया मॉडल तो और भी क्रांतिकारी है! अब उन्हें इलाज में सिर्फ धुआं मिलेगा। हो सकता है स्वास्थ्य विभाग यह सोच रहा हो कि दवा पेट में जाए या नाक से धुएं के रूप में अंदर पहुंचे, असर तो होना ही चाहिए! वैसे भी, इतनी महंगी दवाओं को गरीबों के हाथ में देना कौन-सा समझदारी का काम है? कहीं उन्हें आदत पड़ गई तो?

सरकार सुधार में लगी, कर्मचारी बर्बादी में!

जब स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने में लगे हैं, तब नीचे के कर्मचारी इन सुधारों की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। मंत्री जी जहां अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने की कवायद कर रहे हैं, वहीं उनके कर्मचारी इलाज का नया तरीका खोजकर सरकार की "बचत योजना" चला रहे हैं। मरीज रहेंगे ही नहीं तो इलाज पर खर्च क्यों किया जाए?

अगला कदम क्या? अस्पताल में आग तापने की सुविधा?

अब सवाल यह उठता है कि स्वास्थ्य विभाग की अगली उपलब्धि क्या होगी? कहीं ऐसा न हो कि ठंड के दिनों में अस्पताल में लकड़ी की जगह एक्सपायर्ड दवाएं जलाकर मरीजों को गर्म किया जाए! मरीजों को लगेगा कि सरकार उनकी भलाई के लिए कुछ न कुछ कर रही है।

कब जागेगा सिस्टम?

जांच कमेटी का खेल अब पुराना हो गया है। असली सवाल यह है कि क्या उन कर्मचारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई होगी, या फिर यह मामला भी "कागजी जांच" में दफन हो जाएगा? अगर सरकार सच में सुधार चाहती है, तो ऐसे लापरवाह कर्मचारियों को "धुआं-धुआं" कर देना चाहिए। वरना, स्वास्थ्य विभाग इसी तरह गरीबों की किस्मत पर आग लगाता रहेगा और मरीज जलते धुएं को ही अपनी नियति मानकर बैठ जाएंगे।

अब देखना यह है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेगी या फिर स्वास्थ्य विभाग को दवाएं जलाने के लिए एक "सरकारी ठेका" ही दे दिया जाएगा!


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ