झोपड़ी में सपना, फाइलों में महल – रसूलाबाद की आवास योजना का 'खूबसूरत' मजाक
रसूलाबाद, कानपुर देहात – सरकारी योजनाओं के रंगीन पोस्टर दीवारों पर चिपके हैं, विज्ञापनों में गरीबों के लिए 'पक्के मकानों' के सपने दिखाए जा रहे हैं, और धरातल पर नीलम देवी जैसे लोग तिरपाल की झोपड़ी में ज़िंदगी काट रहे हैं। ये कहानी है उस भारत की, जहाँ योजनाएं कागजों पर बनती हैं और ज़मीन पर केवल गरीब की उम्मीदें टूटती हैं।
नीलम देवी, कारेरामपुर की रहने वाली, आजकल तहसील परिसर में अपने पूरे परिवार के साथ धरने पर बैठी हैं। कारण? प्रधानमंत्री आवास योजना में उनका नाम तो है, पर ‘किस्त’ नहीं है। यानी योजना में पात्र हैं, पर लाभ...वो शायद सिस्टम की पार्टी में ही परोसा जाता है।
2016 की सूची में नीलम देवी का नाम ‘गौरवशाली’ स्थान, क्रमांक 5 पर दर्ज था। मगर गाँव की राजनीति ने उन्हें ‘पांचवां दर्जा’ भी नहीं दिया। ग्राम प्रधान और ग्राम विकास अधिकारी, जो शायद ‘पार्टीबंदी विशेषज्ञ’ की डिग्री लेकर आए हैं, उन्होंने तय कर लिया कि किसे मकान मिलेगा और किसे केवल सपना देखने की इजाज़त।
नीलम देवी अब कहती हैं कि जब तक उन्हें आवास का लाभ या कोई लिखित वादा नहीं मिलेगा, वे अनशन करेंगी। साथ में हैं उनके पति रमेश चंद्र गुप्ता, जो रिक्शा चलाते हैं, बेटा सोनू, बेटियाँ पायल व ईशानी और बहन रजनी। यानी पूरा परिवार अब झोपड़ी से निकल कर तहसील को ही घर मान बैठा है – और सरकारी अफसरों को उम्मीदों की दीवार पर टाँग दिया है।
अब आते हैं ‘विकास के ध्वजवाहक’ बयान पर:
उप जिलाधिकारी सर्वेश कुमार सिंह ने बताया कि नीलम देवी मुख्यमंत्री आवास योजना में पात्र नहीं हैं, लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना में पात्र हैं। वाह! पात्रता की परिभाषा ही बदल दी। जैसे कोई फिल्म में साइड रोल के लिए योग्य हो, मगर लीड रोल में नहीं लिया जा सकता।
उन्होंने खंड विकास अधिकारी डीपी यादव को एक पत्र लिखा है – जिसमें जून माह तक किस्त देने का आश्वासन दिया गया है। यानी इंतज़ार कीजिए, जब तक बारिश आए, झोपड़ी उड़े, और इंसान ‘सहज मृत्यु’ की ओर बढ़े।
अब सवाल ये है कि अगर 2016 से पात्र हैं, तो पैसा अब तक किसके खाते में गया?
कहते हैं भ्रष्टाचार दिखाई नहीं देता, बस ‘किस्तों’ में महसूस होता है। प्रधानमंत्री आवास योजना की असल खूबी यही है – इसमें घर नहीं बनता, बल्कि अफसरों की ईंटें और बाबुओं की जेबें मजबूत होती हैं।
सरकार कहती है – "सबका साथ, सबका विकास"। पर जमीनी हकीकत कहती है – "सरपंच का साथ, अफसर का विकास"।
नीलम देवी का संघर्ष इस बात का सबूत है कि गरीबी आज भी एक सजा है, और सरकारी योजना में उसका नाम आना – महज एक मज़ाक।
और हाँ, अगर जून तक किस्त नहीं आई, तो नीलम देवी का अगला मकान शायद पोस्टरों में बनेगा – क्योंकि यथार्थ में तो केवल वादे ही पक्के हैं, मकान नहीं।
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